EN اردو
दामन तेरा मुझ से छूटा मिलने के हालात नहीं | शाही शायरी
daman tera mujhse chhuTa milne ke haalat nahin

ग़ज़ल

दामन तेरा मुझ से छूटा मिलने के हालात नहीं

एलिज़ाबेथ कुरियन मोना

;

दामन तेरा मुझ से छूटा मिलने के हालात नहीं
लेकिन तुझ को भूल सकूँ मैं ऐसी भी तो बात नहीं

बदले बदले से लगते हैं आज ये तेरे तेवर क्यूँ
पहले जैसे क्यूँ अब तेरे प्यार के वो जज़्बात नहीं

मेरे हाथ की सारी लकीरें उलझी उलझी लाख सही
उन में मुझ को तू मिल जाए होगी मेरी मात नहीं

तुम से बिछड़े अर्सा बीता फिर भी अक्स है आँखों में
आए न हो तुम ख़्वाबों में जो ऐसी कोई रात नहीं

ख़ुश-क़िस्मत हैं लोग वो जिन को प्यार के बदले प्यार मिला
इस दुनिया में हर इंसाँ को हासिल ये सौग़ात नहीं

जाते जाते ग़म की दौलत तुम ने भर दी झोली में
अब ये ज़ीस्त का सरमाया है मा'मूली ख़ैरात नहीं

दर्द-भरी है याद-ए-माज़ी फिर भी बस जी लेते हैं
हम ने जाना हर मंडप में आती है बारात नहीं

चाहे बहार का मौसम हो या वस्ल का कोई आलम हो
बीत गए जो फिर से वापस आते वो लम्हात नहीं

जब जब तुम याद आए 'मोना' भर आईं मेरी आँखें
आग लगाए दिल में आँसू ये कोई बरसात नहीं