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दाम-ए-उल्फ़त में फँसा दिल हाए दिल अफ़्सोस दिल | शाही शायरी
dam-e-ulfat mein phansa dil hae dil afsos dil

ग़ज़ल

दाम-ए-उल्फ़त में फँसा दिल हाए दिल अफ़्सोस दिल

आसिफ़ुद्दौला

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दाम-ए-उल्फ़त में फँसा दिल हाए दिल अफ़्सोस दिल
अब न होवेगा रिहा दिल हाए दिल अफ़्सोस दिल

वो उसे क्या क्या कहे और ये सरकता ही नहीं
हो गया यूँ बे-हया दिल हाए दिल अफ़्सोस दिल

मिलते ही ज़ालिम ने मुझ को छोड़ कर यूँ यक-ब-यक
हो गया मुझ से जुदा दिल हाए दिल अफ़्सोस दिल

आह-ओ-नाले की सदा भी अब तो आने से रही
मर गया शायद मिरा दिल हाए दिल अफ़्सोस दिल

किस तरह उस से बनेगी है बहुत वो बेवफ़ा
और मिरा है बा-वफ़ा दिल हाए दिल अफ़्सोस दिल

मैं ने कितना दिल को समझाया कि अब भी इश्क़ से
बाज़ आ दिल बाज़ आ दिल हाए दिल अफ़्सोस दिल

सो न माना दिल ने और सौदे में आख़िर इश्क़ के
यूँ दिवाना हो गया दिल हाए दिल अफ़्सोस दिल

छोड़ कर मेरे तईं और पास ज़ालिम के रहे
और सहे जौर-ओ-जफ़ा दिल हाए दिल अफ़्सोस दिल

फिर तो 'आसिफ़' ग़ैर से किस बात की कीजे उम्मीद
जब कि अपना दे दग़ा दिल हाए दिल अफ़्सोस दिल