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दाम-ए-ख़याल-ए-ज़ुल्फ़-ए-बुताँ से छुड़ा लिया | शाही शायरी
dam-e-KHayal-e-zulf-e-butan se chhuDa liya

ग़ज़ल

दाम-ए-ख़याल-ए-ज़ुल्फ़-ए-बुताँ से छुड़ा लिया

सफ़ी औरंगाबादी

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दाम-ए-ख़याल-ए-ज़ुल्फ़-ए-बुताँ से छुड़ा लिया
क्या बाल बाल मुझ को ख़ुदा ने बचा लिया

अब उस को रहम आए ये क़िस्मत के हाथ है
बन जाए बात हाल तो हम ने बना लिया

शर्मा के मुँह छुपाने का अंदाज़ देखना
गोया कि उस ने ऐब हमारा छुपा लिया

या ये कि हम ने तर्क-ए-मोहब्बत की ठान ली
या ये हुआ कि आज किसी को मना लिया

होता हूँ एक नाले पे में क़त्ल हाए हाए
आवाज़ दे के अपनी क़ज़ा को बुला लिया

ज़ालिम फ़रेब दे के न ले दिल ग़रीब का
इक रोज़ काम आएगा तेरा दिया लिया

रश्क-ए-रक़ीब हो कि ग़म-ए-दूरी-ए-हबीब
जो वक़्त पर नसीब हुआ हम ने खा लिया

मैं क्या कहूँ के जान रही किस अज़ाब में
जब उस ने मुझ को अपनी बराबर बिठा लिया

झूटा सही ज़लील सही कोई कुछ कहे
मैं ने तो आज उन को गले से लगा लिया

पूछी है दोस्त बन के मिरे दिल की आरज़ू
उस ने ज़बान दे के मिरा मुद्दआ' लिया

ले कोई शान की तो बस इतना किया करो
जिस से कोई बड़ाई सुनी आज़मा लिया

मेहमान दोस्त को जो किया दोस्तों के साथ
देखा था जिस को दीदा-वरों को दिखा लिया

उस की भी मौत सहल हो सकरात से बचे
जिस ने हमारी नज़्अ' में नाम आप का लिया

बैठे तो बात करने न दी बज़्म-ए-ग़ैर में
उट्ठे तो अपने साथ ही मुझ को उठा लिया

दिल का ही एक नाम है शायद ख़याल भी
ऐसा अगर नहीं है तो दिल उस ने क्या लिया

मा'शूक़ को तो जल्वा-नुमाई ज़रूर है
देखो अज़ीज़ मिस्र के सो मैं दिखा लिया

इस दर्जा तू ने ख़स्ता किया ऐ ग़म-ए-फ़िराक़
हम को हमारी गोर ने होंटों से खा लिया

समझा 'सफ़ी' को आप ने जो कुछ ग़लत है ये
दुनिया का बद-मआ'श ज़माने का चालिया