दाग़ होने लगे ज़ाहिर मेरे
तेज़ कर रंग मुसव्विर मेरे
मेरी आँखों में सियाही भर दे
या हरे कर दे मनाज़िर मेरे
नुक़रई झील बुलाती थी उन्हें
फँस गए जाल में ताइर मेरे
कौन तहलील हुआ है मुझ में
मुंतशिर क्यूँ हैं अनासिर मेरे
है कहाँ शंख बजाने वाला
कब से ख़ामोश हैं मंदिर मेरे
संग से जिस्म भी कर अब मुझ को
तू कहाँ खोया है साहिर मेरे
लफ़्ज़ की क़ैद-ओ-रिहाई का हुनर
काम आ ही गया आख़िर मेरे
ग़ज़ल
दाग़ होने लगे ज़ाहिर मेरे
विकास शर्मा राज़