दाएँ बाज़ू में गड़ा तीर नहीं खींच सका
इस लिए ख़ोल से शमशीर नहीं खींच सका
शोर इतना था कि आवाज़ भी डब्बे में रही
भीड़ इतनी थी कि ज़ंजीर नहीं खींच सका
हर नज़र से नजर-अंदाज़-शुदा मंज़र हूँ
वो मदारी हूँ जो रहगीर नहीं खींच सका
मैं ने मेहनत से हथेली पे लकीरें खींचीं
वो जिन्हें कातिब-ए-तक़दीर नहीं खींच सका
मैं ने तस्वीर-कशी कर के जवाँ की औलाद
उन के बचपन की तसावीर नहीं खींच सका
मुझ पे इक हिज्र मुसल्लत है हमेशा के लिए
ऐसा जिन है कि कोई पीर नहीं खींच सका
तुम पे क्या ख़ाक असर होगा मिरे शे'रों का
तुम को तो मीर-तक़ी-'मीर' नहीं खींच सका

ग़ज़ल
दाएँ बाज़ू में गड़ा तीर नहीं खींच सका
उमैर नजमी