छोटी ही सही बात की तासीर तो देखो
थोड़ा सा मगर ज़हर-बुझा तीर तो देखो
पल भर में बिखर जाएँगे मिट्टी के घरौंदे
बच्चों की मगर हसरत-ए-तामीर तो देखो
किस किस के तआ'क़ुब में भटकती रही आँखें
टूटे हुए इक ख़्वाब की ता'बीर तो देखो
लौट आएँगे फिर घर की तरफ़ शाम को पंछी
पैरों से लिपटती हुई ज़ंजीर तो देखो
निकली जो भँवर से तो मुसाफ़िर थे नदारद
टूटी हुई इस नाव की तक़दीर तो देखो
ग़ज़ल
छोटी ही सही बात की तासीर तो देखो
इक़बाल अंजुम