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छोटे बड़े बुरे भले दिन रात के लिए | शाही शायरी
chhoTe baDe bure bhale din raat ke liye

ग़ज़ल

छोटे बड़े बुरे भले दिन रात के लिए

नसीम अब्बासी

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छोटे बड़े बुरे भले दिन रात के लिए
हर शय है सिर्फ़ सूरत-ए-हालात के लिए

मौजूद हैं इस आईना-ख़ाना में हर तरफ़
मेरे ही अक्स मेरी मुलाक़ात के लिए

जो बात सोचने की है कब सोचता हूँ में
कब सोचता है कोई मेरी ज़ात के लिए

फिरती हैं दिल में सूरतें क़ुर्ब-ओ-जवार की
आबाद है ये शहर मज़ाफ़ात के लिए

छोटे से पेड़ की जड़ें जाती हैं दूर दूर
सहरा में रिज़्क़ ढूँडने हर पात के लिए

मैं रुक गया चढ़ी हुई नद्दी के सामने
कुछ वक़्त मेरे पास था बरसात के लिए

हम लोग हैं सलेट पे लिक्खे हुए 'नसीम'
मिटना पड़ेगा अगले सवालात के लिए