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छोड़ दूँ शहर तिरा छोड़ दूँ दुनिया तेरी | शाही शायरी
chhoD dun shahr tera chhoD dun duniya teri

ग़ज़ल

छोड़ दूँ शहर तिरा छोड़ दूँ दुनिया तेरी

शाज़ तमकनत

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छोड़ दूँ शहर तिरा छोड़ दूँ दुनिया तेरी
मुझ को मालूम न था क्या है तमन्ना तेरी

मैं अँधेरे में नहीं दिन के उजाले में लुटा
अब किसे ढूँढे है शम-ए-रुख़-ए-ज़ेबा तेरी

जब कोई पास-ए-मुरव्वत से करम करता है
याद आती है बहुत रंजिश-ए-बे-जा तेरी

पय-ब-पय साथ छुटा जाता है इक दुनिया का
दम-ब-दम याद चली आती है गोया तेरी

दामन-ओ-दस्त-ए-रसा बात ख़ुदा-साज़ तो है
ना-रसाई भी मशिय्यत है ख़ुदाया तेरी

मुंहदिम हो गई दीवार-ए-दिल-ए-दीवाना
मेरी क़िस्मत में थी तस्वीर-ए-शिकस्ता तेरी

तार-तार-ए-नफ़स-ए-जाँ में तिरा नग़्मा है
पैरहन में है अभी बू-ए-शनासा तेरी

ग़ज़ल-ए-'शाज़' है सदक़ा तिरी रा'नाई का
रग-ए-हर-शे'र में है मौज-ए-सरापा तेरी