छिन गए ख़ुद से तुम्हारे हो गए
तुम पे आशिक़ दिल के मारे हो गए
कुछ दिन आवारा फिरे सय्यारा-वार
रह गए तुम पर सितारे हो गए
तुझ पे क़ुर्बां ऐ जमाल-ए-अहद-ए-सोज़
जिस के ब्याहे भी कुँवारे हो गए
क्या इसी को कहते हैं रब्त-ए-दिली
चोर दिल के जाँ से प्यारे हो गए
हम थे तेरे ख़ाकसारों में शुमार
हासिदों में चाँद-तारे हो गए
चार नज़रें चार बातें चार-दिन
हम तुम्हारे तुम हमारे हो गए
इक नज़र करने से तेरा क्या गया
अहल-ए-दिल के वारे-न्यारे हो गए
कुछ तो ख़ुद दिल-फेंक थे 'राहील' हम
कुछ उधर से भी इशारे हो गए

ग़ज़ल
छिन गए ख़ुद से तुम्हारे हो गए
राहील फ़ारूक़