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चेहरे पे मिरे ज़ुल्फ़ को फैलाओ किसी दिन | शाही शायरी
chehre pe mere zulf ko phailao kisi din

ग़ज़ल

चेहरे पे मिरे ज़ुल्फ़ को फैलाओ किसी दिन

अमजद इस्लाम अमजद

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चेहरे पे मिरे ज़ुल्फ़ को फैलाओ किसी दिन
क्या रोज़ गरजते हो बरस जाओ किसी दिन

राज़ों की तरह उतरो मिरे दिल में किसी शब
दस्तक पे मिरे हाथ की खुल जाओ किसी दिन

पेड़ों की तरह हुस्न की बारिश में नहा लूँ
बादल की तरह झूम के घर आओ किसी दिन

ख़ुशबू की तरह गुज़रो मिरी दिल की गली से
फूलों की तरह मुझ पे बिखर जाओ किसी दिन

गुज़रें जो मिरे घर से तो उड़ जाएँ सितारे
इस तरह मिरी रात को चमकाओ किसी दिन

मैं अपनी हर इक साँस उसी रात को दे दूँ
सर रख के मिरे सीने पे सो जाओ किसी दिन