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चेहरे का आफ़्ताब दिखाई न दे तो फिर | शाही शायरी
chehre ka aaftab dikhai na de to phir

ग़ज़ल

चेहरे का आफ़्ताब दिखाई न दे तो फिर

शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी

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चेहरे का आफ़्ताब दिखाई न दे तो फिर
नीली छलकती धूप से आँखों को भर लें हम

आओ मिज़ाज-पुर्सी-ए-दीवार-ओ-दर करें
मुद्दत से हम थे क़ैद अब इन की ख़बर लें हम

चुभती नहीं हैं दर्द की बे-ख़्वाब सूइयाँ
अंगारे अब जगाओ तो शायद असर लें हम

सारे उलूम हम करें फ़िन्नार-ए-वस्सक़र
मासूमियत की राह में तीर-ओ-तबर लें हम

जी चाहता है सीना-ए-अफ़्लाक चीर कर
तूफ़ान-ए-अब्र-ओ-बाद को मुट्ठी में भर लें हम