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चश्म-ए-तर रात मुझ को याद आई | शाही शायरी
chashm-e-tar raat mujhko yaad aai

ग़ज़ल

चश्म-ए-तर रात मुझ को याद आई

मीर हसन

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चश्म-ए-तर रात मुझ को याद आई
अपनी औक़ात मुझ को याद आई

नाला-ए-दिल पर आह की मैं ने
बात पर बात मुझ को याद आई

अभी भूली थी दुख़्त-ए-रज़ तौबा
फिर वो बद-ज़ात मुझ को याद आई

ज़ुल्फ़ में देख ख़ाल को उस के
शब की वो घात मुझ को याद आई

देख लाला का रंग उस की कफ़क
आज हैहात मुझ को याद आई

जी पे जिस के सितम कहीं देखा
दिल की औक़ात मुझ को याद आई

देख रोते 'हसन' को शिद्दत से
पर की बरसात मुझ को याद आई