चमन में आतिश-ए-गुल भी नहीं धुआँ भी नहीं
बहार तो ये नहीं है मगर ख़िज़ाँ भी नहीं
बिछड़ गए हैं कहाँ हम-सफ़र ख़ुदा जाने
नुक़ूश-ए-पा भी नहीं गर्द-ए-कारवाँ भी नहीं
तवाफ़-ए-काबा किया बुत-कदा भी देख आए
सुकून-ए-क़ल्ब यहाँ भी नहीं वहाँ भी नहीं
क़फ़स है गोशा-ए-राहत क़फ़स है दार-ए-अमाँ
ग़म-ए-चमन भी नहीं फ़िक्र-ए-आशियाँ भी नहीं
कहाँ के गीत कहाँ की ग़ज़ल कि हम-सुख़नो
बहुत दिनों से हमें जुरअ'त-ए-फ़ुग़ाँ भी नहीं
ग़ज़ल
चमन में आतिश-ए-गुल भी नहीं धुआँ भी नहीं
राज़ मुरादाबादी