चमन मैं रंग-ए-बहार उतरा तो मैं ने देखा
नज़र से दिल का ग़ुबार उतरा तो मैं ने देखा
मैं नीम-शब आसमाँ की वुसअ'त को देखता था
ज़मीं पे वो हुस्न-ज़ार उतरा तो मैं ने देखा
गली के बाहर तमाम मंज़र बदल गए थे
जो साया-ए-कू-ए-यार उतरा तो मैं ने देखा
ख़ुमार-ए-मय में वो चेहरा कुछ और लग रहा था
दम-ए-सहर जब ख़ुमार उतरा तो मैं ने देखा
इक और दरिया का सामना था 'मुनीर' मुझ को
मैं एक दरिया के पार उतरा तो मैं ने देखा
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ग़ज़ल
चमन मैं रंग-ए-बहार उतरा तो मैं ने देखा
मुनीर नियाज़ी