चले तो कट ही जाएगा सफ़र आहिस्ता आहिस्ता
हम उस के पास जाते हैं मगर आहिस्ता आहिस्ता
अभी तारों से खेलो चाँद की किरनों से इठलाओ
मिलेगी उस के चेहरे की सहर आहिस्ता आहिस्ता
दरीचों को तो देखो चिलमनों के राज़ तो समझो
उठेंगे पर्दा-हा-ए-बाम-ओ-दर आहिस्ता आहिस्ता
ज़माने भर की कैफ़ियत सिमट आएगी साग़र में
पियो उन अँखड़ियों के नाम पर आहिस्ता आहिस्ता
यूँही इक रोज़ अपने दिल का क़िस्सा भी सुना देना
ख़िताब आहिस्ता आहिस्ता नज़र आहिस्ता आहिस्ता

ग़ज़ल
चले तो कट ही जाएगा सफ़र आहिस्ता आहिस्ता
मुस्तफ़ा ज़ैदी