EN اردو
चला जाता है कारवान-ए-नफ़स | शाही शायरी
chala jata hai karwan-e-nafas

ग़ज़ल

चला जाता है कारवान-ए-नफ़स

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

;

चला जाता है कारवान-ए-नफ़स
न बाँग-ए-दरा है न सौत-ए-जरस

बरस कितने गुज़रे ये कहते हुए
कि कुछ काम कर लेंगे अब के बरस

न वो पूछते हैं न कहता हूँ मैं
रही जाती है दिल की दिल में हवस

वो हसरत-ज़दा सैद मैं ही तो हूँ
है परवाज़ जिस की दुरून-ए-हवस

सितम हैं ये 'वहशत' तिरी ग़फ़लतें
तुझे काश होता शुमार-ए-नफ़स