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चल दिए हम ऐ ग़म-ए-आलम विदाअ' | शाही शायरी
chal diye hum ai gham-e-alam widaa

ग़ज़ल

चल दिए हम ऐ ग़म-ए-आलम विदाअ'

ग़ुलाम मौला क़लक़

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चल दिए हम ऐ ग़म-ए-आलम विदाअ'
शोर-ए-मातम ता-कुजा मातम विदाअ'

जाते ही तेरे हर इक का कूच है
जाँ विदाअ' ओ दिल विदाअ' ओ दम विदाअ'

रोज़-ए-मय्यत भी नहीं कम ईद से
पहले रेहलत से हुआ हर ग़म विदाअ'

है क़यामत एक दिन उस का क़याम
दिल को कर ऐ तुर्रा-ए-ख़ुश-ख़म विदाअ'

उस का रस्ता कू-ए-ग़ैर और अपना ख़ुल्द
वो उधर रुख़्सत इधर हैं हम विदाअ'

ग़ैर की ख़ातिर है तो जाने भी दो
कीजिए उस को ख़ुश-ओ-ख़ुर्रम विदाअ'

हाए रे उम्र-ए-रवाँ का क़ाफ़िला
हर क़दम हर आन है हर दम विदाअ'

क्यूँ न हों आग़ोश-ए-हसरत सुब्ह-ओ-शाम
रोज़-ओ-शब आलम से है आलम विदाअ'

है ब-क़द्र-ए-हौसला याँ इत्तिफ़ाक़
जाम से हरगिज़ न होगा जम विदाअ'

सुन चुका हूँ मैं तिरा अज़्म-ए-सफ़र
आँख से मेरी न होगा नम विदाअ'

हसरत-ए-बे-इख़्तियारी देखना
तन से जाँ होती है क्या थम थम विदाअ'

अब कहाँ सब्र-ओ-क़रार-ओ-ताब-ओ-होश
साथ ही इस के हुए पैहम विदाअ'

ला तअय्युन बे निशानी ने किया
कीजिए आराम रुख़्सत रम विदाअ'

मोहलत-ए-रंग-ए-चमन ख़ूँ क्यूँ न हो
हो गई जब फ़ुर्सत-ए-शबनम विदाअ'

ऐ 'क़लक़' चलिए कि मंज़िल दूर है
हो रहेंगे यार सब बाहम विदाअ'