चाँदनी शब है सितारों की रिदाएँ सी लो
ईद आई है बहारों की रिदाएँ सी लो
चश्म-ए-साक़ी से कहो तिश्ना उमीदों के लिए
तुम भी कुछ बादा-गुसारों की रिदाएँ सी लो
हर बरस सोज़न-ए-तक़दीर चला करती है
अब तो कुछ सीना-फ़गारों की रिदाएँ सी लो
लोग कहते हैं तक़द्दुस के सुबू टूटेंगे
झूमती राह-गुज़ारों की रिदाएँ सी लो
क़ुल्ज़ुम-ए-ख़ुल्द से 'साग़र' की सदा आती है
अपने बे-ताब किनारों की रिदाएँ सी लो
ग़ज़ल
चाँदनी शब है सितारों की रिदाएँ सी लो
साग़र सिद्दीक़ी