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चाँदनी शब है सितारों की रिदाएँ सी लो | शाही शायरी
chandni shab hai sitaron ki ridaen si lo

ग़ज़ल

चाँदनी शब है सितारों की रिदाएँ सी लो

साग़र सिद्दीक़ी

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चाँदनी शब है सितारों की रिदाएँ सी लो
ईद आई है बहारों की रिदाएँ सी लो

चश्म-ए-साक़ी से कहो तिश्ना उमीदों के लिए
तुम भी कुछ बादा-गुसारों की रिदाएँ सी लो

हर बरस सोज़न-ए-तक़दीर चला करती है
अब तो कुछ सीना-फ़गारों की रिदाएँ सी लो

लोग कहते हैं तक़द्दुस के सुबू टूटेंगे
झूमती राह-गुज़ारों की रिदाएँ सी लो

क़ुल्ज़ुम-ए-ख़ुल्द से 'साग़र' की सदा आती है
अपने बे-ताब किनारों की रिदाएँ सी लो