चाँद निकले किसी जानिब तिरी ज़ेबाई का
रंग बदले किसी सूरत शब-ए-तन्हाई का
दौलत-ए-लब से फिर ऐ ख़ुसरव-ए-शीरीं-दहनाँ
आज अर्ज़ां हो कोई हर्फ़ शनासाई का
गर्मी-ए-रश्क से हर अंजुमन-ए-गुल-बदनाँ
तज़्किरा छेड़े तिरी पैरहन-आराई का
सेहन-ए-गुलशन में कभी ऐ शह-ए-शमशाद-क़दाँ
फिर नज़र आए सलीक़ा तिरी रानाई का
एक बार और मसीहा-ए-दिल-ए-दिल-ज़दगाँ
कोई वा'दा कोई इक़रार मसीहाई का
दीदा ओ दिल को सँभालो कि सर-ए-शाम-ए-फ़िराक़
साज़-ओ-सामान बहम पहुँचा है रुस्वाई का
ग़ज़ल
चाँद निकले किसी जानिब तिरी ज़ेबाई का
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़