चाँद को पूरा होने दो
बहती नदी को सोने दो
शाम की तरह उदासी को
और भी गहरा होने दो
किसी दिए के साए में
आसमाँ को सोने दो
सपना अगर उगाना है
जागती आँखें बोने दो
आओ लिपट के सो जाएँ
जो होता है होने दो
उजले तन की लहरों में
रात के रंग समोने दो
उम्र की सादा डोरी में
सारे फूल पिरोने दो
पत्थर होता जाता हूँ
हँसने दो या रोने दो
तुम में जाग रहा हूँ मैं
मुझ को ख़ुद में सोने दो
ग़ज़ल
चाँद को पूरा होने दो
नज़ीर क़ैसर