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चाँद धीरे से मुस्कुराया है | शाही शायरी
chand dhire se muskuraya hai

ग़ज़ल

चाँद धीरे से मुस्कुराया है

अब्दुर्रहमान मोमिन

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चाँद धीरे से मुस्कुराया है
चाँद को कौन याद आया है

ख़्वाब में भी नज़र नहीं आया
रात जिस ने मुझे जगाया है

हम नहीं आए तो गिला कैसा
आप ने कब हमें बुलाया है

जो लिखा ही नहीं गया मुझ से
दिल ने वो गीत गुनगुनाया है

तू ने मुझ को बना दिया इंसान
मैं ने तुझ को ख़ुदा बनाया है

तुम से मिल कर मैं उस को भूल गया
जिस ने तुम से मुझे मिलाया है

ठैर कर देख तो ज़रा 'मोमिन'
मैं नहीं हूँ ये तेरा साया है