चाहता हूँ पहले ख़ुद-बीनी से मौत आए मुझे
आप को देखूँ ख़ुदा वो दिन न दिखलाए मुझे
आस क्या अब तो उम्मीद-ए-ना-उम्मीदी भी नहीं
कौन दे मुझ को तसल्ली कौन बहलाए मुझे
दिल धड़कता है शब-ए-ग़म में कहीं ऐसा न हो
मर्ग भी बन कर मिज़ाज-ए-यार तरसाए मुझे
ले चलो लिल्लाह कोई ख़िज़्र-ए-मीना के हुज़ूर
आलम-ए-गुम-गश्तगी की राह बतलाए मुझे
अब तो जोश-ए-आरज़ू 'तस्लीम' कहता है यही
रौज़ा-ए-शाह-ए-नजफ़-अल्लाह दिखलाए मुझे
ग़ज़ल
चाहता हूँ पहले ख़ुद-बीनी से मौत आए मुझे
अमीरुल्लाह तस्लीम