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बुतों का सामना है और मैं हूँ | शाही शायरी
buton ka samna hai aur main hun

ग़ज़ल

बुतों का सामना है और मैं हूँ

हातिम अली मेहर

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बुतों का सामना है और मैं हूँ
ख़ुदा का आसरा है और मैं हूँ

यहाँ आ कर करें क्या यास-ओ-उमीद
दिल-ए-बे-मुद्दआ है और मैं हूँ

मिला जो ख़ाक में क़दमों से छुट के
वो तेरा नक़्श-ए-पा है और मैं हूँ

ख़ुदा जाने बुतो होता है क्या हाल
यही गर दिल मिरा है और मैं हूँ

ज़रा आने तो दे रोज़-ए-क़यामत
सनम तू है ख़ुदा है और मैं हूँ

सितम है ज़ुल्म है उन की तरफ़ से
मोहब्बत है वफ़ा है और मैं हूँ

पसंद ऐ 'मेहर' है ये क़ौल-ए-उस्ताद
सनम कूचा तिरा है और मैं हूँ