बुत क्या हैं बशर क्या है ये सब सिलसिला क्या है
फिर मैं हूँ मिरा दिल हे मिरी ग़ार-ए-हिरा है
जो आँखों के आगे है यक़ीं है कि गुमाँ है
जो आँखों से ओझल है ख़ला है कि ख़ुदा है
तारे मिरी क़िस्मत हैं कि जलते हुए पत्थर
दुनिया मिरी जन्नत है कि शैताँ की सज़ा है
दिल दुश्मन-ए-जाँ है तो ख़िरद क़ातिल-ए-ईमाँ
ये कैसी बलाओं को मुझे सौंप दिया है
सुनते रहें आराम से हर झूट तो ख़ुश हैं
और टोक दें भूले से तो कहते हैं बुरा है
शैतान भी रहता है मिरे दिल में ख़ुदा भी
अब आप कहीं दिल की सदा किस की सदा है
'अख़्तर' न करो उन से गिला जौर-ओ-जफ़ा का
अपनी भी ख़ुदा जाने हवस है कि वफ़ा है

ग़ज़ल
बुत क्या हैं बशर क्या है ये सब सिलसिला क्या है
सईद अहमद अख़्तर