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बुत-कदे में न तुझे काबे के अंदर पाया | शाही शायरी
but-kade mein na tujhe kabe ke andar paya

ग़ज़ल

बुत-कदे में न तुझे काबे के अंदर पाया

लाला माधव राम जौहर

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बुत-कदे में न तुझे काबे के अंदर पाया
दोनों आलम से जुदा हम ने तिरा घर पाया

यूँ तो दुनिया में क़यामत के परी-रू देखे
सब से बढ़ कर तुझे ऐ फ़ित्ना-ए-महशर पाया

अपनी अपनी है ये तक़दीर सभी थे साइल
एक को शीशा मिला एक ने पत्थर पाया

बे-ख़ुदी ने मुझे दीदार दिखाया तेरा
तुझ को पाया तो मगर आप को खो कर पाया

चश्मा-ए-फ़ैज़ है क्या ज़ात मिरे साक़ी की
एक क़तरे को कहा जिस ने समुंदर पाया

ख़ुश-नसीब आप भी दुनिया में हैं क्या ऐ 'जौहर'
मुंतज़िर यार को पहले ही से दर पर पाया