बुत-कदे में न तुझे काबे के अंदर पाया
दोनों आलम से जुदा हम ने तिरा घर पाया
यूँ तो दुनिया में क़यामत के परी-रू देखे
सब से बढ़ कर तुझे ऐ फ़ित्ना-ए-महशर पाया
अपनी अपनी है ये तक़दीर सभी थे साइल
एक को शीशा मिला एक ने पत्थर पाया
बे-ख़ुदी ने मुझे दीदार दिखाया तेरा
तुझ को पाया तो मगर आप को खो कर पाया
चश्मा-ए-फ़ैज़ है क्या ज़ात मिरे साक़ी की
एक क़तरे को कहा जिस ने समुंदर पाया
ख़ुश-नसीब आप भी दुनिया में हैं क्या ऐ 'जौहर'
मुंतज़िर यार को पहले ही से दर पर पाया
ग़ज़ल
बुत-कदे में न तुझे काबे के अंदर पाया
लाला माधव राम जौहर