बुत-ए-बे-दर्द का ग़म मोनिस-ए-हिज्राँ निकला
दर्द जाना था जिसे हम ने वो दरमाँ निकला
आँख जब बंद हुई तब खुलीं आँखें अपनी
बज़्म-ए-याराँ जिसे समझे थे वो ज़िंदाँ निकला
हसरत-ओ-यास का अम्बोह फ़ुग़ाँ की कसरत
मैं तिरी बज़्म से क्या बा-सर-ओ-सामाँ निकला
ख़ून हो कर तो ये दिल आँख से बरसों टपका
न कोई पर दिल-ए-नाकाम का अरमाँ निकला
आइना पैकर-ए-तस्वीर निगाह-ए-मुश्ताक़
जिसे देखा तिरी महफ़िल में वो हैराँ निकला
मुझ को हैरत है हुआ क्या दम-ए-रुख़्सत हमदम
जान निकली मिरे पहलू से कि जानाँ निकला
ख़ूब दोज़ख़ की मुसीबत से बचे हम 'हसरत'
इस का दारोग़ा वही यार का दरबाँ निकला
ग़ज़ल
बुत-ए-बे-दर्द का ग़म मोनिस-ए-हिज्राँ निकला
हसरत मोहानी