बोल पड़ते हैं हम जो आगे से
प्यार बढ़ता है इस रवय्ये से
मैं वही हूँ यक़ीं करो मेरा
मैं जो लगता नहीं हूँ चेहरे से
हम को नीचे उतार लेंगे लोग
इश्क़ लटका रहेगा पंखे से
सारा कुछ लग रहा है बे-तरतीब
एक शय आगे पीछे होने से
वैसे भी कौन सी ज़मीनें थीं
मैं बहुत ख़ुश हूँ आक़-नामे से
ये मोहब्बत वो घाट है जिस पर
दाग़ लगते हैं कपड़े धोने से
ग़ज़ल
बोल पड़ते हैं हम जो आगे से
ज़िया मज़कूर