बिसात-ए-बज़्म उलट कर कहाँ गया साक़ी 
फ़ज़ा ख़मोश, सुबू चुप, उदास पैमाने 
न अब वो जल्वा-ए-यूसुफ़ न मिस्र का बाज़ार 
न अब वो हुस्न के तेवर, न अब वो दीवाने 
न हर्फ़-ए-हक़, न वो मंसूर की ज़बाँ, न वो दार 
न कर्बला, न वो कटते सरों के नज़राने 
न बायज़ीद, न शिबली, न अब जुनैद कोई 
न अब ओ सोज़, न आहें, न हाव-हू ख़ाने 
ख़याल-ओ-ख़्वाब की सूरत बिखर गया माज़ी 
न सिलसिले न वो क़िस्से न अब वो अफ़्साने 
न क़द्र-दाँ, न कोई हम-ज़बाँ, न इंसाँ दोस्त 
फ़ज़ा-ए-शहर से बेहतर हैं अब तो वीराने 
बदल गए हैं तक़ाज़े मिज़ाज-ए-वक़्त के साथ 
न वो शराब, न साक़ी, न अब वो मय-ख़ाने
        ग़ज़ल
बिसात-ए-बज़्म उलट कर कहाँ गया साक़ी
पीर नसीरुद्दीन शाह नसीर

