बिन तिरे क्या करूँ जहाँ ले कर
ये ज़मीं और ये आसमाँ ले कर
अश्क छलकाए बाल बिखराए
वो गए मेरी दास्ताँ ले कर
दो जहाँ की तलब से फ़ारिग़ हूँ
तेरा दर तेरा आस्ताँ ले कर
उड़ गए सब चमन को रह गए हम
चार तिनकों का आशियाँ ले कर
रंग-ए-महफ़िल तिरा बढ़ाने को
आए हम चश्म-ए-ख़ूँ-फ़िशाँ ले कर
सब गए पूछने मिज़ाज उन का
मैं गया अपनी दास्ताँ ले कर
सब फिरे ले के अपने यूसुफ़ को
मैं फिरा गर्द-ए-कारवाँ ले कर
सब उड़े ले के फूल गुलशन से
और हम अपना आशियाँ ले कर
मेरी तक़दीर क्या बताऊँ 'जलील'
जा रही है कहाँ कहाँ ले कर
ग़ज़ल
बिन तिरे क्या करूँ जहाँ ले कर
जलील मानिकपूरी