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बिखरे बिखरे बाल और सूरत खोई खोई | शाही शायरी
bikhre bikhre baal aur surat khoi khoi

ग़ज़ल

बिखरे बिखरे बाल और सूरत खोई खोई

असलम कोलसरी

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बिखरे बिखरे बाल और सूरत खोई खोई
मन घायल करती हैं आँखें रोई रोई

मलबे के नीचे से निकला माँ का लाशा
और माँ की गोदी में बच्ची सोई सोई

एक लरज़ते पल में बंजर हो जाती हैं
आँखों में ख़्वाबों की फ़सलें बोई बोई

सर्द हवाएँ शहरों शहरों चीख़ें लाएँ
मरहम मरहम ख़ेमा ख़ेमा लोई लोई

मैं तो पहले ही से बार लिए फिरता हूँ
तन के अंदर अपनी जिंदड़ी मोई मोई

जीवन का सैलाब उमडता ही आता है
लेकिन ढोर हज़ारों बंदा कोई कोई

रात आकाश ने इतने अश्क बहाए 'असलम'
सारी ही धरती लगती है धोई धोई