बीमार-ए-ग़म का कोई मुदावा न कीजिए
या'नी सितमगरी भी गवारा न कीजिए
रुस्वाई है तो ये भी गवारा न कीजिए
या'नी पस-ए-ख़याल भी आया न कीजिए
ज़र्फ़-ए-निगाह चाहिए दीदार के लिए
रुख़ को पस-ए-नक़ाब छुपाया न कीजिए
दिल शौक़ से जलाइए इंकार है किसे
लेकिन जला जला के बुझाया न कीजिए
पर्दा निगाह का है तो कैसी ख़ुसूसियत
अपनी निगाह-ए-नाज़ से पर्दा न कीजिए
कल ग़ैर की गली में क़यामत का ज़िक्र था
शरमाइए हुज़ूर बहाना न कीजिए
बस आप का सितम ही करम है मिरे लिए
लिल्लाह ग़ैर से मुझे पूछा न कीजिए
पाबंदा-ए-वफ़ा है तो फिर मुद्दआ' से काम
मर जाइए किसी की तमन्ना न कीजिए
'तालिब' हदीस-ए-इश्क़ तवज्जोह तलब सही
यूँ दास्ताँ बना के सुनाया न कीजिए

ग़ज़ल
बीमार-ए-ग़म का कोई मुदावा न कीजिए
तालिब बाग़पती