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बीम-ए-रक़ीब से नहीं करते विदा-ए-होश | शाही शायरी
bim-e-raqib se nahin karte wida-e-hosh

ग़ज़ल

बीम-ए-रक़ीब से नहीं करते विदा-ए-होश

मिर्ज़ा ग़ालिब

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बीम-ए-रक़ीब से नहीं करते विदा-ए-होश
मजबूर याँ तलक हुए ऐ इख़्तियार हैफ़

जलता है दिल कि क्यूँ न हम इक बार जल गए
ऐ ना-तमामी-ए-नफ़स-ए-शोला-बार हैफ़