EN اردو
बिगड़ जाते थे सुन कर याद है कुछ वो ज़माना भी | शाही शायरी
bigaD jate the sun kar yaad hai kuchh wo zamana bhi

ग़ज़ल

बिगड़ जाते थे सुन कर याद है कुछ वो ज़माना भी

हफ़ीज़ जौनपुरी

;

बिगड़ जाते थे सुन कर याद है कुछ वो ज़माना भी
कोई करता था जब मेरी शिकायत ग़ाएबाना भी

वो जिस पर मेहरबाँ होते हैं दुनिया उस की होती है
नज़र उन की पलटते ही पलटता है ज़माना भी

सुना करता हूँ ता'ने हिज्र में क्या क्या रक़ीबों के
बना हूँ इस मोहब्बत में मलामत का निशाना भी

यहाँ भी फ़र्ज़ है ज़ाहिद अदब से सर झुका लेना
मिरे नज़दीक का'बा है किसी का आस्ताना भी

फ़रेब-ए-दाम में लाई है कुछ सय्याद की ख़ातिर
क़फ़स में खींच कर लाया हमें कुछ आब-ओ-दाना भी

जला कर दिल मिरा सय्याद का ठंडा कलेजा कर
कहीं ऐ बर्क़ जल्दी फूँक मेरा आशियाना भी

बिगड़ते देर होती है न बनते देर होती है
मिज़ाज-ए-यार से कुछ मिलता-जुलता है ज़माना भी

हसीं पढ़ कर ग़ज़ल मेरी मिरे मुश्ताक़ होते हैं
मुसख़्ख़र दिल को करता है कलाम-ए-आशिक़ाना भी

न भूलेगी हफ़ीज़ अहबाब को ये सरगुज़िश्त अपनी
जहाँ में याद रह जाएगा कुछ अपना फ़साना भी