बिछड़ के उन के हम इस एहतिमाल से भी गए
बयान-ए-ग़म से गए अर्ज़-ए-हाल से भी गए
थी जिन की याद से रौशन ख़याल की दुनिया
वो ऐसे रूठे बिसात-ए-ख़याल से भी गए
निगाहें मिलने से मुमकिन है प्यार आ जाए
हम उन की बज़्म में कुछ इस ख़याल से भी गए
उन्हों ने आ के कोई हाल तक नहीं पूछा
बनावटी ही सही इंदिमाल से भी गए
दिल उन को दे के बहुत मुतमइन हुए हम भी
कि रोज़ रोज़ की अब देख-भाल से भी गए
निगाह-ए-लुत्फ़ नहीं तो निगाह-ए-क़हर सही
सितम तो ये है हम इस एहतिमाल से भी गए
वो आए चीं-ब-जबीं इस लिए सर-ए-महफ़िल
हम उन से अब तो जवाब-ओ-सवाल से भी गए
दिल इक पियाला था मिट्टी का वो भी टूट गया
निगाह मिलते ही जाम-ए-सिफ़ाल से भी गए
ख़ुदा पे छोड़ के ऐ 'मौज' कश्ती-ए-उल्फ़त
सुकून पा गए फ़िक्र-ए-मआल से भी गए

ग़ज़ल
बिछड़ के उन के हम इस एहतिमाल से भी गए
मोज फ़तेहगढ़ी