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भूले अफ़्साने वफ़ा के याद दिल्वाते हुए | शाही शायरी
bhule afsane wafa ke yaad dilwate hue

ग़ज़ल

भूले अफ़्साने वफ़ा के याद दिल्वाते हुए

असर लखनवी

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भूले अफ़्साने वफ़ा के याद दिल्वाते हुए
तुम तो आए और दिल की आग भड़काते हुए

मौज-ए-मय बल खा गई गुल को जमाई आ गई
ज़ुल्फ़ को देखा जो उस आरिज़ पे लहराते हुए

बे-मुरव्वत याद कर ले अब तो मुद्दत हो गई
तेरी बातों से दिल-ए-मुज़्तर को बहलाते हुए

नींद से उठ कर किसी ने इस तरह आँखें मलीं
सुब्ह के तारे को देखा आँख झपकाते हुए

हम तो उट्ठे जाते हैं लेकिन बता दे इस क़दर
किस के दर की ख़ाक छाने तेरे कहलाते हुए

झाड़ कर दामन 'असर' जिस बज़्म से उठ आए थे
आज फिर देखे गए हज़रत उधर जाते हुए