भूल कर भी न फिर मलेगा तू
जानता हूँ यही करेगा तू
देख आगे मुहीब खाई है
लौट आ वर्ना गिर पड़ेगा तू
दिल की तख़्ती पे नाम है तेरा
याँ नहीं तो कहाँ रहेगा तू
मेरे आँगन में एक पौदा है
फूल बन के महक उठेगा तू
रास्ते में कई दुकानें हैं
हर दुकाँ पर दिखाई देगा तू
मैं ने आँखों से जेब भर ली है
देखता हूँ कहाँ छपेगा तू
ख़ुश रखेंगी ये दूरियाँ तुझ को
क्या यूँ ही मुस्कुरा सकेगा तू
ग़ज़ल
भूल कर भी न फिर मलेगा तू
आदिल मंसूरी