भीड़ ऐसी है कि मुझ को रास्ता मिलता नहीं
गुल कोई खिलता नहीं शोला कोई उठता नहीं
ऐ मिरे शौक़-ए-तलब तेरे जुनूँ की ख़ैर हो
तू ने क्या हद-ए-निगह का फ़ासला देखा नहीं
ऐ ग़ुरूर-ए-हुस्न मैं तेरे बदन का अक्स हूँ
महव-ए-हैरत हूँ कि तू ने मुझ को पहचाना नहीं
एक पल में ये रिदा-ए-आब में छुप जाएँगी
रंग की लहरों के पीछे भागना अच्छा नहीं
दिल जहाँ ले जाए दिल के साथ जाना चाहिए
इस से बढ़ कर और कोई रहनुमा होता नहीं
जिस के जल्वों ने अज़ल से मुज़्तरिब रक्खा मुझे
वो तो मेरे सामने भी आज तक आया नहीं
ग़ज़ल
भीड़ ऐसी है कि मुझ को रास्ता मिलता नहीं
जमील यूसुफ़