भागा तो बहुत था मौत से मैं कम-बख़्त ने लेकिन आन लिया
उन लाखों ही मरने वालों में क्या जल्द मुझे पहचान लिया
जब क़त्ल हुआ मैं तड़पा भी छींटें भी उड़ाईं मान लिया
इल्ज़ाम ख़ुद उस पर क्या ये नहीं दामन को न क्यूँ गर्दान लिया
तू आम फ़रेबी मुझ से न कर हम मर्द हैं सुन ले ऐ दुनिया
जो मुँह से कहा वो कर गुज़रे जो ठान लिया वो ठान लिया
अक़साम थे यास-ओ-हसरत के अस्नाफ़-ए-उमीद-ए-बेहद के
जब चलने लगे हम दुनिया से साथ अपने बहुत सामान लिया
जिस हाथ से मुझ को क़त्ल किया उस हाथ का कलिमा पढ़वाया
ली जान तो ख़ैर एहसान किया क़ातिल ने मगर ईमान लिया
मय-ख़ाना है जा-ए-ऐश-ओ-तरब याँ बैठ के रोना क्या मा'नी
क्या मुफ़्त का अपने सर तू ने ऐ दीदा-ए-तर तूफ़ान लिया
उस घर में करम जब तू ने किया कुछ देर ठहर ऐ तीर-ए-नज़र
बोसा तिरे क़दमों का दिल ने किस शौक़ से ऐ मेहमान लिया
आराम-तलब होने का गुमाँ जूया पे तिरे ला-हौल वला
तब पाँव को तोड़े बैठा हूँ जब दश्त-ओ-जबल को छान लिया
जिस भेस में तू हो क्या पर्वा आइंदा न खाएगी धोका
ऐ तालिब-ए-दुनिया दुनिया ने हर तरह तुझे पहचान लिया
थी धार रग-ए-गर्दन पे मिरी सीना भी दबा था क़दमों से
ख़ंजर का तिरे बोसा हम ने मुँह फेर के ता-इम्कान लिया
ऐ 'शाद' अबस है उस का गिला वो हज्व करे या तुझ से फिरे
ता-हश्र रहा शागिर्द तिरा उस्ताद तुझे जब मान लिया
ग़ज़ल
भागा तो बहुत था मौत से मैं कम-बख़्त ने लेकिन आन लिया
शाद अज़ीमाबादी