बेवफ़ा कहिए बा-वफ़ा कहिए
दिल में आए जो बरमला कहिए
उन के ज़ुल्म-ओ-सितम का क्या शिकवा
हुस्न की शोख़ी-ए-अदा कहिए
दे दिया दिल किसी सितमगर को
आप चाहे उसे ख़ता कहिए
हर ख़ुशी का निखार है उस में
लज़्ज़त-ए-ग़म को और क्या कहिए
दिल कभी उस को मानता ही नहीं
आप ख़ुद को न बेवफ़ा कहिए
अपने दामन की कुछ ख़बर है 'मजीद'
सोच कर ख़ुद को पारसा कहिए
ग़ज़ल
बेवफ़ा कहिए बा-वफ़ा कहिए
अब्दुल मजीद ख़ाँ मजीद