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बेटे को सज़ा दे के अजब हाल हुआ है | शाही शायरी
beTe ko saza de ke ajab haal hua hai

ग़ज़ल

बेटे को सज़ा दे के अजब हाल हुआ है

तनवीर सिप्रा

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बेटे को सज़ा दे के अजब हाल हुआ है
दिल पहरों मिरा कर्ब के दोज़ख़ में जला है

औरत को समझता था जो मर्दों का खिलौना
उस शख़्स को दामाद भी वैसा ही मिला है

हर अहल-ए-हवस जेब में भर लाया है पत्थर
हम-साए की बैरी पे अभी बोर पड़ा है

अब तक मिरे आसाब पे मेहनत है मुसल्लत
अब तक मिरे कानों में मशीनों की सदा है

ऐ रात मुझे माँ की तरह गोद में ले ले
दिन भर की मशक़्क़त से बदन टूट रहा है

शायद मैं ग़लत दौर में उतरा हूँ ज़मीं पर
हर शख़्स तहय्युर से मुझे देख रहा है