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बेहोशियों ने और ख़बरदार कर दिया | शाही शायरी
behoshiyon ne aur KHabardar kar diya

ग़ज़ल

बेहोशियों ने और ख़बरदार कर दिया

जोश मलीहाबादी

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बेहोशियों ने और ख़बरदार कर दिया
सोई जो अक़्ल रूह ने बेदार कर दिया

अल्लाह रे हुस्न-ए-दोस्त की आईना-दारियाँ
अहल-ए-नज़र को नक़्श-ब-दीवार कर दिया

या रब ये भेद क्या है कि राहत की फ़िक्र ने
इंसाँ को और ग़म में गिरफ़्तार कर दिया

दिल कुछ पनप चला था तग़ाफ़ुल की रस्म से
फिर तेरे इल्तिफ़ात ने बीमार कर दिया

कल उन के आगे शरह-ए-तमन्ना की आरज़ू
इतनी बढ़ी कि नुत्क़ को बेकार कर दिया

मुझ को वो बख़्शते थे दो आलम की नेमतें
मेरे ग़ुरूर-ए-इश्क़ ने इंकार कर दिया

ये देख कर कि उन को है रंगीनियों का शौक़
आँखों को हम ने दीदा-ए-ख़ूँ-बार कर दिया