बे-सबब मुस्कुरा रहा है चाँद
कोई साज़िश छुपा रहा है चाँद
जाने किस की गली से निकला है
झेंपा झेंपा सा आ रहा है चाँद
कितना ग़ाज़ा लगाया है मुँह पर
धूल ही धूल उड़ा रहा है चाँद
कैसा बैठा है छुप के पत्तों में
बाग़बाँ को सता रहा है चाँद
सीधा-सादा उफ़ुक़ से निकला था
सर पे अब चढ़ता जा रहा है चाँद
छू के देखा तो गर्म था माथा
धूप में खेलता रहा है चाँद
ग़ज़ल
बे-सबब मुस्कुरा रहा है चाँद
गुलज़ार