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बे-सबब मुस्कुरा रहा है चाँद | शाही शायरी
be-sabab muskura raha hai chand

ग़ज़ल

बे-सबब मुस्कुरा रहा है चाँद

गुलज़ार

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बे-सबब मुस्कुरा रहा है चाँद
कोई साज़िश छुपा रहा है चाँद

जाने किस की गली से निकला है
झेंपा झेंपा सा आ रहा है चाँद

कितना ग़ाज़ा लगाया है मुँह पर
धूल ही धूल उड़ा रहा है चाँद

कैसा बैठा है छुप के पत्तों में
बाग़बाँ को सता रहा है चाँद

सीधा-सादा उफ़ुक़ से निकला था
सर पे अब चढ़ता जा रहा है चाँद

छू के देखा तो गर्म था माथा
धूप में खेलता रहा है चाँद