बे-सबब लोग बदलते नहीं मस्कन अपना
तुम ने जलते हुए देखा है नशेमन अपना
किस कड़े वक़्त में मौसम ने गवाही माँगी
जब गरेबान ही अपना है न दामन अपना
अपने लुट जाने का इल्ज़ाम किसी को क्या दूँ
मैं ही था राह-नुमा मैं ही था रहज़न अपना
कोई मिलता है जो इस दौर-ए-पुर-आशोब में दोस्त
मशवरे दे के बना लेते हैं दुश्मन अपना
जब भी सच बोलते बच्चों पे नज़र पड़ती है
याद आ जाता है बे-साख़्ता बचपन अपना
यूँ किया करते हैं लड़कों को नसीहत अक्सर
जैसे हम ने न गुज़ारा हो लड़कपन अपना
रंग-ए-महफ़िल के लिए हम नहीं बदले 'मोहसिन'
वही अंदाज़-ए-तख़य्युल है वही फ़न अपना
ग़ज़ल
बे-सबब लोग बदलते नहीं मस्कन अपना
मोहसिन भोपाली