बे-सबब क्यूँ तबाह होता है
फ़िक्र-ए-फ़र्दा गुनाह होता है
तुझ को क्या दूसरों के ऐबों से
क्यूँ अबस रू-सियाह होता है
मुझ को तन्हा न छोड़ कर जाओ
ये ख़ला बे-पनाह होता है
ज़क उसी से बहुत पहुँचती है
जो मिरा ख़ैर-ख़्वाह होता है
उस घड़ी उस से माँग लो सब कुछ
जब 'अदम' बादशाह होता है
ग़ज़ल
बे-सबब क्यूँ तबाह होता है
अब्दुल हमीद अदम