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बे-मिस्ल-ओ-बे-हिसाब उजालों के बा'द भी | शाही शायरी
be-misl-o-be-hisab ujalon ke baad bhi

ग़ज़ल

बे-मिस्ल-ओ-बे-हिसाब उजालों के बा'द भी

वक़ार ख़ान

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बे-मिस्ल-ओ-बे-हिसाब उजालों के बा'द भी
कुछ और माँग जान से प्यारों के बा'द भी

क्या सोच रौशनी से ज़ियादा है तेज़-रौ
हम बंद रह सके न फ़सीलों के बा'द भी

तस्वीर से ज़ियादा तसव्वुर की उम्र है
कुछ ख़्वाब ज़िंदा रहते हैं आँखों के बा'द भी

फिर ख़ौफ़ से बे-फ़िक्र ही करना पड़ा उसे
बदली न मेरी क़ौम अज़ाबों के बा'द भी

चाहो अगर अमान तो हाज़िर है मेरा दिल
मज़बूत है ये क़िला दराड़ों के बा'द भी

अक़लीय्यतों के जैसे ख़ुदा की तरह हैं हम
साबित न हो सके जो हवालों के बा'द भी

क़ैदी मोहब्बतों पे यक़ीं किस तरह रखें
मिलती है कब रिहाई सज़ाओं के बा'द भी