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बे-ख़ुदा होने के डर में बे-सबब रोता रहा | शाही शायरी
be-KHuda hone ke Dar mein be-sabab rota raha

ग़ज़ल

बे-ख़ुदा होने के डर में बे-सबब रोता रहा

अज़रा परवीन

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बे-ख़ुदा होने के डर में बे-सबब रोता रहा
दिल के चौथे आसमाँ पर कौन शब रोता रहा

क्या अजब आवाज़ थी सोते शिकारी जाग उठे
पर वो इक घायल परिंदा जाँ-ब-लब रोता रहा

जाते जाते फिर दिसम्बर ने कहा कुछ माँग ले
ख़ाली आँखों से मगर दिल बे-तलब रोता रहा

मैं ने फिर अप्रैल के हाथों से दिल को छू लिया
और दिल सायों से लिपटा सारी शब रोता रहा

उस ने मेरे नाम सूरज चाँद तारे लिख दिया
मेरा दिल मिट्टी पे रख अपने लब रोता रहा