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बे-चारगी-ए-हसरत-ए-दीदार देखना | शाही शायरी
be-chaargi-e-hasrat-e-didar dekhna

ग़ज़ल

बे-चारगी-ए-हसरत-ए-दीदार देखना

हफ़ीज़ होशियारपुरी

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बे-चारगी-ए-हसरत-ए-दीदार देखना
मुश्किल न देखना है तो दुश्वार देखना

लम्हात-ए-इंतिज़ार की रफ़्तार देखना
वो बार बार साया-ए-दीवार देखना

यूँ देखना कि टूटे न रिश्ता निगाह का
इक बार देखने में वो सौ बार देखना

या सुब्ह ही से शाम का पुर-कैफ़ इंतिज़ार
या शाम ही से सुब्ह के आसार देखना

क्या दिल-फ़रेब है तिरे ख़्वाब-ए-गिराँ का हुस्न
तुझ से निहाँ तिरे लब-ओ-रुख़्सार देखना

दर्द-ए-फ़िराक़ की सहर-ए-अव्वलीं 'हफ़ीज़'
उठते ही जानिब-ए-दर-ओ-दीवार देखना