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बे-असर बे-समर तिरा मिलना | शाही शायरी
be-asar be-samar tera milna

ग़ज़ल

बे-असर बे-समर तिरा मिलना

हमीद गौहर

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बे-असर बे-समर तिरा मिलना
सिर्फ़ तस्वीर-भर तिरा मिलना

आ गईं दरमियान संगीनें
हो गया मो'तबर तिरा मिलना

मछलियाँ हाथ में नहीं रुकतीं
मुख़्तलिफ़ है मगर तिरा मिलना

शहर की बत्तियाँ न गुल कर दे
रात पिछले पहर तिरा मिलना

मंज़िलों का सुराग़ हो जैसे
आज इस मोड़ पर तिरा मिलना