बताऊँ क्या किसी को मैं कि तुम क्या चीज़ हो क्या हो
मिरी हसरत मिरे अरमान हो मेरी तमन्ना हो
मोहब्बत में क़लक़ हो रंज हो सदमा हो ईज़ा हो
ये सब कुछ हो कोई पर्दा-नशीं लेकिन न रुस्वा हो
तुम अपने हुस्न की क्या बुल-हवस से दाद पाओगे
उसे पूछो मिरे दिल से कि तुम क्या चीज़ हो क्या हो
मिरे दिल को न मल तलवों से अपने में ये डरता हूँ
कहीं ऐसा न हो उस में कोई ख़ार-ए-तमन्ना हो
न देखूँ किस तरह हुस्न-ए-ख़ुदा-दाद उन हसीनों का
भला उन ज़ाहिदों की तरह कौन आँखों का अंधा हो
तिरी तस्वीर भी है बाइ'स-ए-दिल-बस्तगी लेकिन
उसे तस्कीन क्या हो जो तिरी बातों पे मरता हो
'हफ़ीज़' आना हुआ है फिर अज़ीमाबाद में अपना
फिर अगले वलवले पैदा हुए अब देखिए क्या हो
ग़ज़ल
बताऊँ क्या किसी को मैं कि तुम क्या चीज़ हो क्या हो
हफ़ीज़ जौनपुरी