बताएँ क्या कि कहाँ पर मकान होते थे
वहाँ नहीं हैं जहाँ पर मकान होते थे
सुना गया है यहाँ शहर बस रहा था कोई
कहा गया है यहाँ पर मकान होते थे
वो जिस जगह से अभी उठ रहा है गर्द-ओ-ग़ुबार
कभी हमारे वहाँ पर मकान होते थे
हर एक सम्त नज़र आ रहे हैं ढेर पे ढेर
हर एक सम्त मकाँ पर मकान होते थे
ठहर सके न 'रज़ा' मौज-ए-तुंद के आगे
वो जिन के आब-ए-रवाँ पर मकान होते थे
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ग़ज़ल
बताएँ क्या कि कहाँ पर मकान होते थे
अख़्तर रज़ा सलीमी