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बताएँ क्या कि कहाँ पर मकान होते थे | शाही शायरी
bataen kya ki kahan par makan hote the

ग़ज़ल

बताएँ क्या कि कहाँ पर मकान होते थे

अख़्तर रज़ा सलीमी

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बताएँ क्या कि कहाँ पर मकान होते थे
वहाँ नहीं हैं जहाँ पर मकान होते थे

सुना गया है यहाँ शहर बस रहा था कोई
कहा गया है यहाँ पर मकान होते थे

वो जिस जगह से अभी उठ रहा है गर्द-ओ-ग़ुबार
कभी हमारे वहाँ पर मकान होते थे

हर एक सम्त नज़र आ रहे हैं ढेर पे ढेर
हर एक सम्त मकाँ पर मकान होते थे

ठहर सके न 'रज़ा' मौज-ए-तुंद के आगे
वो जिन के आब-ए-रवाँ पर मकान होते थे